Friday, February 17, 2012

{ ९२ } इश्क का अंजाम






उनकी खुशी कौन निहारे, हमको गम की शाम बहुत
हर पल ही जब दिल तडपे, कैसे कहें आराम बहुत।

इश्क मे कैसी शानो-शौकत, इश्क केवल अपनापन
इश्क की मीनारों को अक्सर मिलती मलाम बहुत।

अच्ल औ’ मसर्रत शैदाई का, सबको है नसीब कहाँ
हम जैसे गम के मारों को मयखाने की शाम बहुत।

हमने की इबादत हमेशा और कदम बोसी इश्क की
बेवफ़ाई औ’ रुसवाई का हमको मिला ईनाम बहुत।

इश्क मे बदनामी मिलती, चाहे जितना सादिक हो
इश्क में यारों हम हो गये गली-गली बदनाम बहुत।

इश्क जुआँ, इश्क बीमारी, इश्क न जाने दुनियादारी
इश्क न करना मेरे यारों, इसका है बुरा अंजाम बहुत।


....................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


मलाम=डाँट-डपट
वस्ल=मिलन
मसर्रत=साथ, संग
शैदाई=प्रेमी
सादिक=प्रेमी


1 comment:

  1. वाह बहुत खूब .....
    प्यार का फ़साना लिखा जाएगा ,अफसाना लिखा जाएगा ,
    जब कभी प्यार कि बात चलेगी ,हमे दीवाना लिखा जाएगा !!

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