प्यार के गीतों की गंगा मे नित नहाता कौन है
अब हर घडी प्रेम-रस को ही गुनगुनाता कौन है।
दिन के जगते ही नैन नीर भर कर रोती हैं यादें
रात को सुनहरे सपनों की लोरी सुनाता कौन है।
नफ़रतों के नाम लिखी जिसने अपनी ज़िन्दगी
ऐसे बदराह इंसान को यहाँ सिर झुकाता कौन है।
लुटते रहें हमसफ़र सामने चाहे अपनी निगाह के
दुनिया में अब गैर को अपना दोस्त बनाता कौन है।
बस छोटे खयालों के लम्बे जुम्लों की हकीकतें हैं
मकसदे-ज़िन्दगी और अदब अब सिखाता कौन है।
.......................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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