गमों का कोई इलाज नही, दवा भी नही, केवल पी, शराब पी
गमज़दगी मे और कर भी सकते हैं क्या, बस पी, शराब पी।
क्या - क्या गजल कह दी हैं हमने, गजालाचश्म की जुदाई में
शबे-हिज्राँ में और अब किसका रहा सहारा, बस पी, शराब पी।
दिल बुझा - बुझा सा है और आ गईं शामे-गम की परछाइयाँ
माशूक से दूरी - तनहाई में क्या करूँ, बैठ कर पी, शराब पी।
हजारों जाम से टकराकर किया है हमने अपना जाम खाली
माशूक से है इतनी मोहब्बत मुझे, मैने खूब पी, शराब पी।
मोहब्बत में कहाँ गजब है मिलना - बिछड जाना माशूक से
मुझ सा दीवाना देख के न हो हैरान, आराम से पी, शराब पी।
................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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