तुम भी खफा हो लोग भी नाखुश हैं दोस्तों
अब यकीं हो गया कि बुरे हम ही हैं दोस्तों|
मेरा जिक्र शायद ही तेरे अफसानों में आये
मेरे न होने का अब और किसे गम है दोस्तों|
तूने कभी मेरी नाम आँखों को गौर से देखा है
क्या कहें, किसको मेरे हाल पे रहम है दोस्तों|
तेरा नाम न भी लूँ फिर भी ज़माना कहता है
इसके दिल के हौसलों में बड़ा दम है दोस्तों|
लुट के भी खुश हूँ मैं, अश्कों से भरा है दामन
जा हंसी-खुशी, तेरी आँखे क्यों नाम है दोस्तों|
जातां से पाया था, फिर किस तरह खो दिया
जिन्दगी तेरी तलाश में जीस्त खत्म है दोस्तों|
.................................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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