Friday, September 30, 2022
{३५९} मासूम अश्क
Thursday, September 29, 2022
{३५८} तुम सम्हले नहीं
तुम्हें याद है
पिछली बार तुम कब ठिठके थे
अपने अंतःकरण के द्वार पर,
कब खोली थी
साँकल तुमने
अपने अंतर्मन की,
कब बजे थे
कुछ शब्द
तुम्हारे कानों में
घण्टियों की तरह,
और तुम
लड़खड़ाए थे
संभल जाने को,
तुम सम्हले नहीं,
आजतक उसी तरह
लड़खड़ा रहे हो,
तुम्हारी यह लड़खड़ाहट
शायद तुमसे चिपकी ही रहेगी,
दीवार पर चिपके,
किसी इश्तिहार की तरह। ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
Tuesday, September 27, 2022
{३५७ } गति और नियति
Sunday, September 25, 2022
{३५६ } लौट कर नहीं आते कभी ये
Thursday, September 22, 2022
{३५५ } हम चमन-चमन इश्क बोते हैं
Wednesday, September 21, 2022
{३५४ } हम उनसे मिलना चाहते हैं
Monday, September 19, 2022
{३५३ } जीवन का यही ताना-बाना
Saturday, September 17, 2022
{३५२ } मेरी अम्मा .. प्यारी अम्मा
जीवन को नाम देती
होंठों को मुस्कान देती
स्वप्नों को परवान देती
हौसलों को उड़ान देती
मेरे दर्द मे कराह देती
माथे पर छलछला आए पसीने को
अपने नरम आँचल से पोंछ देती
फिर बहुत दुलार से
सिर पर हाथ फेर देती
अपनी ममता भरी छाँव में लेकर
दुनिया के हर दुख से दूर कर देती,
ढूँढता हूँ आज उस आँचल को
जिससे बिछड़ चुका हूँ वर्षों पूर्व
उस आँचल का नर्म अहसास
आज भी मुझे दुलरा जाता है
और लगता है कि जैसे तुम यहीं कहीं हो
मेरे ही आस-पास .. .. ..
मेरी अम्मा .. प्यारी अम्मा.. .. .. !!!
.. गोपाल कृष्ण शुक्ल
Friday, September 16, 2022
{३५१ } अनुज ! तुम कहाँ चले गए
अनुज ! तुम कहाँ चले गए
अब सिर्फ तुम्हारी यादें ही शेष
होठ फड़फड़ाते पर मौन हैं शब्द
शून्य में तुम्हें खोजती आँखें
पर तुम दूर बहुत दूर हो..........
उफ्फ़
हृदय में तीव्र पीड़ा
कोई उपचार भी तो नहीं
इस हृदयविदारक पीड़ा का
बस
आँसुओं से ही कर रहा तर्पण
शायद इसी से
मुझे कुछ शान्ति मिले।
मुझे कुछ शान्ति मिले ।।
.. गोपाल कृष्ण शुक्ल
Thursday, September 15, 2022
{३५०} हाँ, वो किसान है
Wednesday, September 14, 2022
{३४९ } अब न छूटेगा ये रास्ता मोहब्बत का
अंजाम हुआ क्या, बर्बाद मोहब्बत का
क्यूँ कत्ल हुआ यारों, पाक मोहब्बत का।
हम जाते हैं महफ़िल से टूटा दिल लेकर
इंसाफ खुदा देगा, अब मेरी मोहब्बत का।
वो नेह के बंधन थे, तुम तोड़ गए जिनको
कमजोर बड़ा निकला, धागा मोहब्बत का।
रोते हैं चमकते सितारे और रोती रातें भी
देखो चाँद भी रोता है, अपनी मोहब्बत का।
चाहे तुम मुझे यूँ ही बेअदब ही कहते रहो
अब न छूटेगा मेरा ये रास्ता मोहब्बत का।
............ गोपाल कृष्ण शुक्ल
{३४८} तमाम उम्र का हिसाब निकाल के रख
तमाम उम्र का हिसाब निकाल के रख
बची जरा सी उम्र उसे सम्हाल के रख ।
हर कदम यहाँ फिसलन ही फिसलन है
बाकी सफर है कदम देख-भाल के रख।
हसीन ख्वाब आते हैं पर सच नहीं होते
इन्हे कुछ दिन के लिए तू टाल के रख।
हयात जैसी भी गुजरी है गुजरी बेहतर
जो बाकी है उम्र बिना सवाल के रख।
चिराग जैसे है वैसी ही है रौशनी उनकी
चुनांचे जेहन में खयाल कमाल के रख।
.. .. गोपाल कृष्ण शुक्ल
{३४७ } खो गया हूँ शहर की रफ्तार में
मैं खो गया हूँ शहर की रफ्तार में
दिल टहल रहा इश्क के गुलजार में|
अब तो नुक्कड़ भी नही पहचानता
बैठा करता जहाँ मैं यूँ ही बेकार मे |
उस गली मे फिर कहाँ जाना हुआ
दिल जहाँ टूटा था पहले प्यार में|
मुस्कुराहट उलझनों मे बदल गई
उलटफेर ये ज़िंदगी के गुलजार में |
लौट चलें फिर उस बचपन की ओर
कुछ नहीं रखा जवानी के प्यार में|
.. .. गोपाल कृष्ण शुक्ल