मैं खो गया हूँ शहर की रफ्तार में
दिल टहल रहा इश्क के गुलजार में|
अब तो नुक्कड़ भी नही पहचानता
बैठा करता जहाँ मैं यूँ ही बेकार मे |
उस गली मे फिर कहाँ जाना हुआ
दिल जहाँ टूटा था पहले प्यार में|
मुस्कुराहट उलझनों मे बदल गई
उलटफेर ये ज़िंदगी के गुलजार में |
लौट चलें फिर उस बचपन की ओर
कुछ नहीं रखा जवानी के प्यार में|
.. .. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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