जीवन को नाम देती
होंठों को मुस्कान देती
स्वप्नों को परवान देती
हौसलों को उड़ान देती
मेरे दर्द मे कराह देती
माथे पर छलछला आए पसीने को
अपने नरम आँचल से पोंछ देती
फिर बहुत दुलार से
सिर पर हाथ फेर देती
अपनी ममता भरी छाँव में लेकर
दुनिया के हर दुख से दूर कर देती,
ढूँढता हूँ आज उस आँचल को
जिससे बिछड़ चुका हूँ वर्षों पूर्व
उस आँचल का नर्म अहसास
आज भी मुझे दुलरा जाता है
और लगता है कि जैसे तुम यहीं कहीं हो
मेरे ही आस-पास .. .. ..
मेरी अम्मा .. प्यारी अम्मा.. .. .. !!!
.. गोपाल कृष्ण शुक्ल
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