Thursday, April 20, 2017

{३३९} ज़ख्म की ज़ख्म ही दवा है





यारों तुमने  सच ही कहा है
ज़ख्म की  ज़ख्म ही दवा है।

उसके  जाने  का  न  हो दर्द
दिल  पे  पत्थर  ही  रखा  है।

ज़ख्म दिखा के क्या फ़ायदा
यहाँ पे मुस्कुराना ही भला है।

शायद  वो  कभी आ ही जाएँ
दिल का दरवाजा भी खुला है।

लाश की मानिन्द  हो गया हूँ
ज़िस्म है पर जान ही ज़ुदा है।

.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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