Monday, January 16, 2023

{४१३} बूढ़ा मन काँपने सा लगता है





कँगूरों पर जब शाम उतर आती है 
ये बूढ़ा मन काँपने सा लगता है......। 

खुशियों के चमन के फूलों की पाँखेँ 
काँटों से सजी सेज हो जाती है......

पोर-पोर तक थक कर चूर हुए दिन की 
उखड़ती साँसें तेज हो जाती हैं......

अम्बर को भेदते शिखरों का मस्त राही 
रपटीली ढ़ालों पर हाफने सा लगता है......। 

कँगूरों पर जब शाम उतर आती है 
ये बूढ़ा मन काँपने सा लगता है......।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Wednesday, January 4, 2023

{४१२} चाँद जल रहा है




हवा में भरी तेजाबी चुभन
चाँद भी जल रहा है,
तड़पती चाँदनी को देख
दिल भी दहल रहा है,
आवाजों को घेरे हुए 
शहरों में पसरे हैं सन्नाटे,
बेवफा हुआ मंजर,
मोहब्बत निगल रहा है।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल