मन,
बहुत उदास है आज,
पर उसने
अपने शरीर को
उजले आवरण से
ढँक रखा है,
अपने चेहरे पर
चिपका ली है
एक बीमार सी मुस्कान
और खोज रहा है
मन के कँटीले बियावान में
सौगँधित सुमनों के बागीचे को।।
.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के ब्लॉग बुलेटिन - भारतीय रेल के गौरवमयी १६० वर्ष पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
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