एत्माद की जमीं पर ही खिला करता इश्क का गुलाब
लिखो वरक पर वरक, सँवर जाये इश्क की किताब।
दुनिया में मजहबे-इश्क को निभाना जरा मुश्किल है
भ्रम में उलझी हुई है दुनिया पर कहते इश्क है खराब।
वो क्या समझ सकेंगें कभी किसी के पाक इश्क को
जो न लहरायें परचम और न गायें इश्क का इंकलाब।
इश्क का फ़लसफ़ा समझना हर किसी की कूबत नहीं
इश्क सिर्फ़ इश्क ही है इसे कुछ और न समझे जनाब।
अब दुनिया कुछ भी समझती रहे पर मेरा यही सच है
इश्क ही है अब मेरी जन्नत इश्क ही है मेरा आफ़ताब।
--------------------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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