पाँखुरी
Thursday, April 28, 2011
{ ३३ } आवरण
आदमी को,
आदमी बनने के लिये,
एक आवरण की आवश्यकता होती है।
शरीर पर ओढ़ा हुआ आवरण
चाहे कपड़े का हो
या फ़िर,
सभ्यता और सलीके का।
शरीर का आवरण उतारा तो
आदमी,
आदमी नही रहता।
सिर्फ़ नंगा होता है।
सिर्फ़ नंगा॥
……………………………… गोपाल कृष्ण शुक्ल
1 comment:
गीता पंडित
May 2, 2011 at 11:49 AM
बहुत सुन्दर भाव हैं ..
गोपाल जी...
बधाई...
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बहुत सुन्दर भाव हैं ..
ReplyDeleteगोपाल जी...
बधाई...