कर दूँ ये जान तक कुर्बान है।
इश्क का सम्मान करेगा वो ही
जिंदा जिस शख्स में इंसान है।
इश्क का तज़ुर्बा हुआ उसे भी
चाहत से वो कब अनजान है।
हाय रे कातिल अदा की नज़र
न कहो कि वो अभी नादान है।
यूँ तो न दूर जाइये ऐ नाज़्नीन
वस्ल का पल रहा अरमान है।
........................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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