या इश्क का किरदार मत करना।
गिरा दो ये नफ़रतों के ऊँचे महल
नादान दिलों में दरार मत करना।
नादानियों में खो न जाऊँ कहीं
नज़रों से दरकिनार मत करना।
मँज़िलें ख्वाब बन कर न रह जाएँ
ऐसे वक्त का इन्तज़ार मत करना।
दिल की लगी को दिल ही जाने
दिल को कभी बेकरार मत करना।
................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "काम की बात - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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