ज़ख्म की ज़ख्म ही दवा है।
उसके जाने का न हो दर्द
दिल पे पत्थर ही रखा है।
ज़ख्म दिखा के क्या फ़ायदा
यहाँ पे मुस्कुराना ही भला है।
शायद वो कभी आ ही जाएँ
दिल का दरवाजा भी खुला है।
लाश की मानिन्द हो गया हूँ
ज़िस्म है पर जान ही ज़ुदा है।
.................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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