हमने बहुत ही करीने से सजा कर
अपने कुछ टूटे अरमानों के दर्मियाँ
अपनी एक छोटी सी ख्वाहिश रख दी है।
तमाम कोशिशें की मगर
ख्वाहिशें हैं कि पूरी होती ही नहीं
दिन-ब-दिन बढ़ती ही जाती हैं
किसी गहरे अन्धे कुएँ की तरह।
आ सको अगर तो आ जाओ
इस तरफ़ जो कभी भूले से ही तुम
अपनी एक चुटकी भर तमन्ना
हौले से मेरी ख्वाहिशों में मिला देना।
तब शायद पूरी हो सकें
मेरी वो तमाम ख्वाहिशें
जो आज भी अपलक
तुम्हारी ही बाट जोह रही हैं।।
................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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