कौंध-कौंध जाती है
याद तुम्हारी।
बिरहन कोयल की कूक सी
दर्द का तराना गाती है
याद तुम्हारी।
कोमल हृदयांगन में
कठोर काँटे सी धँसती जाती है
याद तुम्हारी।
सूनी-सूनी बगिया में
चिडिया सी चहचहाती है
याद तुम्हारी।
नीरव रात्रि में
अकेले दीप सी टिमटिमाती है
याद तुम्हारी।
--------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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