मन मेरा जाने क्यों
आज कुछ-कुछ उदास है।।
बीती सुधियों से बोझिल आँखों में
जब-तब आँसू भर आते हैं
पलकों को करके बन्द हम यूँ ही
करते खुद से ही खुद बातें हैं।
सूनी जँगल सी हैं आहें
जीवन में बढ़ गई प्यास है।
मन मेरा जाने क्यों
आज कुछ-कुछ उदास है।।१।।
जीवन, तुमसे जाने क्या-क्या
निज मन को उम्मीदे हैं
आहों ने अधूरी ही रच दी
चाहों की तस्वीरें है।
जीवन में दर्द मचलता
प्रीति-पीड़ा मे बसी हर श्वांस है।
मन मेरा जाने क्यों
आज कुछ-कुछ उदास है।।२।।
अद्भुत यह उद्वेग प्रीत के
टिके परस्पर नयन मीत के
प्रीति-ज्वार में सागर चंचल
उठती-गिरती लहरें अविचल।
टूटा स्वप्न प्रीति-पर्व का
छूटा प्रीति युगल-पाश है।
मन मेरा जाने क्यों
आज कुछ-कुछ उदास है।।३।।
............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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