अब न अच्छी लगती प्यार की बातें
ये सब अब हैं लगती बेकार की बातें।
आसमाँ-चाँद-सितारे, गुलो-चमन से
बढ कर अब हो गईं तकरार की बातें।
जाने क्योंकर बदली सबकी फ़ितरत
रह गईं बाकी केवल बेजार की बातें।
दिल पर लगती चोट पर बन्द न होती
आपस की ये बेकार-तकरार की बातें।
बेरँग चेहरों से भरी हुई इस बस्ती मे
बाकी बच गईं केवल बीमार सी बातें।
------------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल
भावप्रवण रचना, बधाई।
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