तुमने हमें भुला दिया, हम न तुम्हे भुला पायेंगे
लगी है आग जो दिल में, कैसे उसे बुझा पायेंगे।
तेरी अदाओं और आँखों का नशा बसा जेहन में
तेरे इस सुरूर को हम हरगिज़ न छुडा पायेंगे।
तन्हा हो गई हैं अब मेरे दिल की तन्हाइयाँ भी
तुम्हारी इस जुदाई को हम कैसे मिटा पायेंगे।
हर शाम गुजर जाती है अब किसी मयखाने मे
बन गया हूँ रिन्द, पैमाना अब न हटा पायेंगें।
गुमनामियाँ ही अब मेरा ठिकाना बन चुकी है
दुनिया के लिये हम अजनबी कहला जायेंगें।
-------------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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