हुस्न से इश्क का इजहार कर दिया
खुद को हुस्न का बीमार कर दिया।
हुस्न की मदभरी नज़र के जाम ने
बाहवास को मय-खुमार कर दिया।
छम से आके दिल के सूने आँगन में
हुस्न ने इश्क का श्रृँगार कर दिया।
शहनाई के स्वर, मधुमासी गीतों ने
पतझर को मौसमे-बहार कर दिया।
रहगुज़र पर खिल गये सुर्ख गुलाब
दिल को महकता गुलजार कर दिया।
............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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