मृदुल-चँन्द्र किरण वातायन से
झाँक-झाँककर मुस्कुरा रही है।
आओ सजनि, याद तुम्हारी सता रही है।।
सुधियों के सागर में आनन
प्रतिबिम्बित होते पल-पल
लहराते बिखरे केश-कुन्तल
जैसे छाए हों सँध्या के बादल।
श्यामल-अँगों की मधुर गँध
प्राणों को लुभा रही है।
आओ सजनि, याद तुम्हारी सता रही है।।१।।
चपल चाँदनी जब झाँकती
झुरमुटों में से लजा कर
मौलश्री से सुवासित
वायु चलती मुस्कुरा कर।
मस्त-मस्त मँथर पवन
तन-मन गुदगुदा रही है।
आओ सजनि, याद तुम्हारी सता रही है।।२।।
और न अब प्यासे को भटकाओ
मन की आशाओं को न ठुकराओ
रूप-वारुणी के चषक पिलाओ
मन-मोहक रागिनी सुनाओ।
नूपुरों की मधुर ध्वनि
कँठ को लुभा रही है।
आओ सजनि, याद तुम्हारी सता रही है।।३।।
....................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
कहाँ गई हैं भाभी???मायके???
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव हैं दादू!!
ReplyDeleteशुक्रिया अंशू
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