मेरे प्राण ! तुम हो, कुन्दन-कुन्दन।
प्रियतम बोलो तो, बोलो तो।।
स्मृति-पट पर अब तक
मैंने, अनगिन चित्र उकेरे,
कितने ही आमंत्रण भेजे
मैंने, नित्य साँझ-सबेरे।
तुम हृद में, फ़िर भी मैं उनमन-उनमन,
मेरे प्राण ! तुम हो, कुन्दन-कुन्दन।
प्रियतम बोलो तो, बोलो तो।।१।।
तुम पूर्णिमा-सम मस्त यौवन
दग्ध-हृदय की मैं कथा हूँ
लिये मिलन की आस हृदय में
उत्ताल सागर मैं मथ रहा हूँ।
अर्पण हो जाने को, विचलन-विचलन,
मेरे प्राण ! तुम हो, कुन्दन-कुन्दन।
प्रियतम बोलो तो, बोलो तो।।२।।
नीले अम्बर की छाया में
खिली चाँदनी सा मुस्काना
अभिसार याचित रजनी में
छुई-मुई सा शरमा जाना।
साँसों के क्रम में दहकन-दहकन,
मेरे प्राण ! तुम हो, कुन्दन-कुन्दन
प्रियतम बोलो तो, बोलो तो।।३।।
घूँधट-पट खोलो, मैं भी देखूँ
अवगुँठन के पीछे कैसी माया,
यों तो तुमने पहले ही कर दी
अपनी चितवन से तरंगित काया।
तृषित मन विचरत, मधुवन-मधुवन,
मेरे प्राण ! तुम हो कुन्दन-कुन्दन।
प्रियतम बोलो तो, बोलो तो।।४।।
मेरे उर की विकल वेदना
प्रियतम तुम कब पहचानोगे,
मेरे मौन रुदन की भाषा
कब सुनोगे, कब जानोगे।
मेरी साँसों पर है आहों का बन्धन,
मेरे प्राण ! तुम हो कुन्दन-कुन्दन।
प्रियतम बोलो तो, बोलो तो।।५।।
.............................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
श्रृंगार रस छलकाती प्रेम भाव से ओतप्रोत एक बेहतरीन रचना.............
ReplyDeleteacharya shree kya baat hain bahut sunder uttam hi uttma
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