टकरात क्यों आइना पत्थर से बार-बार
डूबता है दिल दर्दे-समन्दर में बार-बार।
समझ ही न सका कि मेरा कुसूर क्या है
सुनता रहा सजा सितमगर से बार-बार।
अपने प्यार की शिकायत करूँ किस से
लुटा हूँ बीच राह गारतगर से बार-बार।
जिनके लिये जला किये शमा की तरह
कत्ल हुआ मैं उसी चारागर से बार-बार।
दरिया सा मस्त बहना था अपना अंदाज़
लड रही तकदीर अब मुकद्दर से बार-बार।
.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
गारतगर = लुटेरा
चारागर = हकीम
acharya shree ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,sirph pranam hain
ReplyDeleteशुक्रिया चिन्ता मणि जी
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