थकन तो अगले सफ़र के लिये एक बहाना है
जिस्म बदलती रूह का कहाँ एक ठिकाना है।
पिये दर्द के प्याले मन ढकने को आँसू हैं कम
लाखों की भीड यहाँ, पर कोई नही पहचाना है।
दर्द ही पाया दर्द सँजोया दर्द ही जीता आया हूँ
दर्द ही है तकदीर हमारी, दर्द मे ही मुस्काना है।
जिस-जिस चेहरे में जब भी अपनापन है ढूँढा
उनसे पाया मैने हरदम दर्द का ही नजराना है।
खूब रोया खून के आँसू खुद को तनहा देख कर
हो अचम्भित खोजता, कहाँ अपना ठिकाना है।
......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह ....................इस एक शब्द के अलावा कुछ और नहीं सूझ रहा| इस गजल ने मन उद्वेलित कर दिया|
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