एक दूसरे का
हाथ थामे
नदी के तट तक
आ गये है
हम और तुम।
पागल सर्द हवा में
उसी तरह
लहरा रहा है
तुम्हारा आँचल
जैसे
नदी बहती है
कल-कल, कल-कल।
नदी में
जल का
सतत प्रवाह
वैसा ही है
जैसे
हमारा प्रेम अथाह।
मँत्रमुग्ध सा
मैं अपलक देख रहा हूँ
क्षितिज में
जहाँ पर आपस में
मिल रहे हैं
दो प्रेमी बादल
वो भी थामें हैं
एक दूसरे का हाथ
बिलकुल उसी प्रकार
जैसे
इस वक्त
नदी के तट पर
खडे हैं
हम और तुम।।
...................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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