गुलों की तरह लबों को खोल तो सही
खुश्बू की जुबाँ में कुछ बोल तो सही।
दस्तक देती रोशनी तेरी दहलीज़ पर
ये बन्द खिडकियाँ जरा खोल तो सही।
उम्र भर साथ किसी का मुमकिन नहीं
दो पल मेरे सँग-सँग तू डोल तो सही।
दौलत, शोहरत सब खुदा की देन है
मगरूर क्यों जरा मीठा बोल तो सही।
गौर से देख जरा धूप-छाँव है दुनिया
छोटी सी ज़िंदगी आँखें खोल तो सही।
शबे-तार का भी कहीं तो होगा सबेरा
रब की रहमत पे तू किलोल तो सही।
.......................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
शबे-तार = नितांत अँधेरी रात
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