ज़िन्दगी में कैसे हो गई गमों से मुलाकात, क्या बताऊँ।
मैं गुनहगार हरगिज़ नहीं दिल के जज्बात, क्या बताऊँ।
तरसता हूँ कि अब न आते खत समन्दर के उस पार से
गमों की मुझको मिली जाने कैसी सौगात, क्या बताऊँ।
पाले हुए हो तुम चाँदनी की कुछ इसकदर खुशफ़हमियाँ
कैसे कटी हमारी ओस में भीगी हुई ये रात, क्या बताऊँ।
कुछ पाने की क्या खुशी और क्या हो कुछ खोने का गम
वो मेरा हाले-दिल भी नही करते दरयाफ़्त, क्या बताऊँ।
मेरे जज्बातों की इस दुनिया ने कीमत ही नहीं समझी
हर लमहा हम पर तारी है सिर्फ़ ज़ुल्मात, क्या बताऊँ।
............................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
तारी = छाई हुई
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