किसी के दर्द में जो शामिल नहीं
वो पत्थर है आदमी का दिल नहीं।
अपने हमराह ही जब साथ छोड दें
सफ़ीना पाता कभी साहिल नहीं।
फ़ूलों के जख्म भी भर नहीं पाते
साथ मेरे जब कोई आमिल नहीं।
गुमनामी का नहीं कोई ठिकाना
मेरे लिये जब कोई महफ़िल नहीं।
कई खेल-तमाशे हैं राहे-जीस्त में
हम उन्हे देखने के काबिल नहीं।
................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
सफ़ीना = नाव
साहिल = किनारा
आमिल = हकदार
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