Thursday, January 3, 2013

{ २२६ } हम आग की दरिया में जल गये





उजले चेहरे के
रँग और तेवर
बदल गये।

झुके हुए काँधों पर
साँझ के साये
ढल गये।

वो खुश-लम्हे जिन्दगी के
मीरूसी मे मिले थे जो
नर्म हथेलियों,
बन्द मुठ्ठियों से
फ़िसल गये।

रफ़्ता-रफ़्ता
हम आग की दरिया में
जल गये।।

..................... गोपाल कृष्ण शुक्ल



मीरूसी = विरासत

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