उजले चेहरे के
रँग और तेवर
बदल गये।
झुके हुए काँधों पर
साँझ के साये
ढल गये।
वो खुश-लम्हे जिन्दगी के
मीरूसी मे मिले थे जो
नर्म हथेलियों,
बन्द मुठ्ठियों से
फ़िसल गये।
रफ़्ता-रफ़्ता
हम आग की दरिया में
जल गये।।
..................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
मीरूसी = विरासत
No comments:
Post a Comment