Tuesday, September 25, 2012

{ २०३ } ज़िन्दगी हुई बेवफ़ा





ज़िन्दगी हुई बेवफ़ा फ़िर भी मुझे प्यारी लगे
खुशियाँ डूबी गम में फ़िर भी मुझे प्यारी लगे।

ज़िन्दगी में हर चीज अनोखी सी ही लगती है
मौत सी है ज़िन्दगी फ़िर भी मुझे प्यारी लगे।

भूली यादें फ़िर ताजा हो जख्मों को कुरेदती हैं
दर्द से हो गई यारी फ़िर भी मुझे प्यारी लगे।

ज़िन्दगी को तरसाया करते हैं ये गर्दिशे-दौराँ
इम्तिहान है ज़िन्दगी फ़िर भी मुझे प्यारी लगे।

दिल जख्मी किया कमींगाह से आते तीरों ने
यही राहें ज़िन्दगी की फ़िर भी मुझे प्यारी लगे।


---------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल


कमींगाह = शिकार के लिये छिपकर बैठने की जगह

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