ढूँढ रहा हूँ मैं
अपने बचपन को
आशाओं के आवरण में,
जाने कहाँ छुप गया है
हमारा बचपन,
जाने क्यों वो मेरे सँग
आँख मिचौली खेल रहा है,
जब भी पीछे मुडकर देखता हूँ
अजीब सा आभास होता है
जैसे किसी ने
हर लिया है मेरा बचपन
और दे गया है कुछ
कटु अनुभव,
वो अनुभव
जो मेरा बचपन
मुझे नहीं लौटा सकता।।
---------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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