दुनिया में सभी को गले से तुम लगाओ
किसी न किसी को हमदर्द तुम बनाओ।
क्यों बैठ गये इन चरागों को बुझा कर
अपनी आँखों से खुद को न तुम छुपाओ।
कभी बाग-चमन-बियाबाँ में भी टहलो
गमों को भी हँस-हँस कर तुम भुलाओ।
महफ़िलों में भी रहते हो तनहा-तनहा
दिल की तन्हाई को अब तुम मिटाओ।
जाँच-परख कर रिश्ते नही बना करते
दिल से ही दिलों को अब तुम मिलाओ।
------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल
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