Friday, May 11, 2012

{ १५९ } बीमार है ये ज़िन्दगी




हर घडी बेबस, उदास, खलीउल-इजार है ये ज़िन्दगी
बस जी रहे हैं मजबूरियों में हम, बेजार है ये ज़िन्दगी।

सरताज है कौन अपना, हम ढूँढते फ़िर रहे हैं सब तरफ़
इस आस में ही गुजरता वक्त, इन्तजार है ये ज़िन्दगी।

जब सारा जहाँ खुशहाल है, फ़िर कहर हम पर ही क्यों
खयाल ये जेहन में है कैसे कटेगी, फ़िगार है ये ज़िन्दगी।

मची है हलचल सी दिलो-दिमाग में, हर घडी इम्तिहान,
कमबख्त जियें क्यों इसे, फ़ित्ना-परदाज है ज़िन्दगी।

अपनी तकदीर का रोना लिये अब जायें किसके पास हम
राहत कहाँ, आह कर सकते नहीं, बीमार है ये ज़िन्दगी।


.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



खलीउल-इजार = बेलगाम
फ़िगार = जख्मी
फ़ित्ना-परदाज = साजिशी


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