इश्क में इस दिल ने कितना गम उठाया है
दिन हो या रात हो इश्क ने सिर्फ़ रुलाया है।
तबीब भी न कर सकेंगे इलाज इस दिल का
ऐसा जख्म मेरी माशूक ने दिल पे लगाया है।
महजबीं तो सिर्फ़ खेल समझते हैं इश्क को
उस बेदर्द को मैंने दिल से अपना बनाया है।
न दिन को चैन है, न रात को मिलता सुकून
कमबख्त इश्क मेरे दिल में इतना समाया है।
न दिल ही है काबू में, न मैं ही हूँ अपने बस में
इश्क ने मुझे इतना पागल-दिवाना बनाया है।
..................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
तबीब=हकीम, वैद्य
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