अगरू की बाती है
गंध, धूप बाती है
धूम्र की महक है
जलन की कसक है।
राहें हैं, तिराहें हैं
हर ओर चौराहे हैं
गलियाँ हैं, मोड हैं
कराहों की होड है।
सरकता जा रहा समय चक्र
निश्चित है सबका काल चक्र
बीत जाता कुछ मनमाफ़िक सा
कुछ दिखलाता अपनी चाल वक्र।
तपश्चर्या का महा पथ है
साधना का राज पथ है
धर्म भाव बनाता इसे सुपथ है
यही मानव का भाग्य पथ है।।
....................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह बहुत खूब ,,,,,आज का समय चक्र ऐसा ही है ...
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