पाँखुरी
Thursday, October 20, 2022
{३८४ } कविता का जन्म
मस्तिष्क में घुमड़ती
शून्यता को चीर कर
विचार जन्म पाते हैं।
शब्दों की देहरी
चढ़ते - चढ़ते
संवादों से
संवाद कर
सुदृढ़ पंक्तियों का
सुंदर रूप लेते है।
और तब
कभी दिन में
या कभी रात में
या यूँ ही
किसी भी समय
जन्मती है
एक कविता।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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