दर्द में मरहम लगाने की रवायत नही।
ये शीशा एक न एक दिन टूटना ही था
तमाम उम्र करेगा कोई हिफ़ाजत नहीं।
धोखा, फ़रेब, मक्कारियों से भरे कदम
सभी जानते हैं ये हमारी विरासत नहीं।
शायद मैं ही गुनहगार पर मुँसिफ़ है वो
अपने लिये की इंसाफ़ की हिमायत नहीं।
न कोई गिला रहा न कोई शिकवा उनसे
जब उनको ही हमसे कोई मोहब्बत नहीं।
.............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
रवायत = प्रथा
मुँसिफ़ = न्याया धीश
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