दुनिया का कोलाहल हो या जंगल की तनहाई हो
पा ही लेंगे साहिल अपना चाहे जितनी गहराई हो।
संग तेरी दुआओं के बरसेगी रहमत रब की मुझपे
मिल ही जायेगी शोहरत चाहे जितनी ऊँचाई हो।
गर हो नजरिया खूबसूरत तो मिलती है इज्जत
बात करो जब भी कोई तुम उसमें बस दानाई हो।
मौसम के भी तेवर देखो पतझर हो या बसन्त बहार
बहती रहे मस्त पवन चाहे पछुआ हो या पुरवाई हो।
गीत लिखो, गज़ल लिखो या कि लिखो तुम रूबाई
लिखो जो भी कलम में बस मुस्कानों की स्याही हो।
........................................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल
दानाई = बुद्धिमानी
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