निर्माण जिसे तू कहता फ़िरता
मूरख ! वह भूमिका तो प्रलय की है.............
अपनी सुविधा में लगे हुए चिल्लाते हो
कहते ये माँग आज के समय की है.............
वंचक हो जायें शासक तो समझ लो
उन्नति हुई चहुँओर सिर्फ़ अनय की है..........
कथनी में त्याग-स्नेह है लेकिन
करनी में छाप लगी संचय की है.................
हो जाओ खबरदार घिरने को उठी
चहुँओर घनघोर घटा क्षय की है..............
निर्माण जिसे तू कहता फ़िरता
मूरख ! वह भूमिका तो प्रलय की है।।
........................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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