मोहब्बत में छिपी गहराइयाँ देखो
झूठ मे दफ़न हुई सच्चाइयाँ देखो।
दिल की दहकती आग दबती नहीं
नकाब में छिपी रुसवाइयाँ देखो।
खामोश रात, बोझिल चाँदनी में
मेरे आँगन की तनहाइयाँ देखों।
मेरे गमों का तुमको गुमान नहीं
आहों से बजती शहनाइयाँ देखो।
है मेरी मोहब्बत का ये निशान
अपने पीछे मेरी परछाइयाँ देखो।
............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल
वाह ... हर शेर लाजवाब ...
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