होठों का बेवक्त हँसना
जुल्फ़ों का बार-बार बिखरना
ख्वाबों में डुबो कर मुझे
नींद का कोसों दूर चला जाना
खुश्बू की मंद-मंद बयार का चलना
अपनी ही हँसी का कानों में गूँजना
आँखों में तेरे नक्श का आना
जेहन में तेरे नाम का छा जाना
बतला देता है
कि
तेरी याद आई है।।
..................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment