देश के हालात पर नहीं किसी की नजर है
बुलन्द मुल्क का महल हो रहा खन्डहर है।
बौरा गये हैं बागबान अपने इस चमन के
गुल को बिसरा रहे और खार की फ़िकर है।
बेगुनाहों की कराहों से घुटा जा रहा है दम
दहशतो से दरक रहा दिल किस कदर है।
हर मोड़ पर किस कदर छा चुका है धुआँ
दुख-दर्द उदासियों से भरी हुई रहगुजर है।
अब ऐसे रहनुमाओं की देश को तलाश है
ज़ज़्बातों को जिन्दा रखे जिसका जिगर है।
--------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बहुत सुन्दर | आज के परिवेश को आवाज़ देती पंक्तियाँ | बधाई गोपाल भईया |
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