हर प्रातः
संतान का स्वप्न
उदर में सँजोये
मेरी बाँझ आँखे
गर्भवती होती है,
पर,
बाहर गूँजती हुई
लज्जित करने वाली
दानवी आवाजों से डर
मेरा क्लीव मन
दिन पूरा होने से पूर्व ही
गर्भ को निर्ममता से
मार देता है
और फ़िर
शेष बचते है
वेदना पूरित
मेरी आकुल आँखों से
टपकते हुए
दो आँसू।।
----------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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