ज़िन्दगी को ज़िन्दगी सा बिताऊँ मैं कैसे
सुर बिना गीतों को गाऊँ मैं कैसे
क्या पाया हमने सब कुछ खो गया है॥
मेरे गीतों का सुर कहीं खो गया है।।१।।
कई गीत लिख चुका विपदाओं के घर मे
कई गीत गा चुका सुविधाओं के सफ़र में
ज़िन्दगी के सफ़र में कोई काँटे बो गया है।
मेरे गीतों का सुर कहीं खो गया है।।२।।
मन में बँधी उमँगे, असहाय जल गईं
अरमान-आरजू की लाशें निकल गईं
कोई तो आकर देखे, मुझे क्या हो गया है।
मेरे गीतों का सुर कहीं खो गया है।।३।।
टूटे वीणा के तार, गीत गाना कठिन है
है समन्दर आँख में, मुस्कुराना कठिन है
ज़िन्दगी दे गई गहरी टीस, दिल रो गया है।
मेरे गीतों का सुर कहीं खो गया है।।४।।
------------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
सुंदर ...जिंदगी की भावनाओं से ओतप्रोत ...
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