आज मन क्यों अनमना है।
उन्मत्त बादलों के सँग रहना
जल प्रवाह सा कल-कल बहना
डर न था कभी आँधियों से
दिशा-दिशा में उत्तुंग पेंग भरना
पर, यह अचानक हुआ क्या
हृदय का सँबल छिना है।
आज मन क्यों अनमना है।।१।।
छटपटा रही हैं भावनायें
नेह को तरसती कामनाये
अब न थमती दिख रहीं
गगन व्यापी गर्जनायें
हिल गई प्रेम की दीवार
कामना बन गई छलना है।
आज मन क्यों अनमना है।।२।।
भूल चुका गुनगुनाते पार जाना
सँग-सँग समय के मुस्कुराना
चहुँ ओर बस चर्चा यही है
क्यों हुआ निढाल ये दीवाना
साथ साहस है न तसल्ली
मीत हुआ मृग-कँचना है।
आज मन क्यों अनमना है।।३।।
---------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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