मेरे हर ज़ख्म की खौफ़नाक कहानी है
मायूस चेहरे पे छाई मुस्कान वीरानी है।
गमों की चटक धूप झुलसा गयी है हमें
भावनायें हो चुकी मौन की निशानी है।
ज़िंदगी भर वक्त ने लम्हा-लम्हा लूटा
दर्दो-गम औ’ मुश्किलें हुईं दर्मियानी हैं।
आए न जिनको रहबरी का सलीका ही
हुआ काफ़िला उनकी सुपुर्दे-निगरानी है।
गुलों की जुस्तज़ू में हुई खारों से दोस्ती
बाद मुद्दत के सीरत उनकी पहचानी है।
अरमानों के शीशमहल मे छाई खामोशी
तनहाई का मौसम, शामे-गम सुहानी है।
आस की नींदों के ख्वाब सहर मे जुदा हुए
ऐ ज़िन्दगी ! कैसी बेरहम तेरी कहानी है।
--------------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल
रहबर = पथप्रदर्शक
सीरत = स्वभाव
वाह !!! दादू!!! हर रस में आपकी पैठ बहुत उत्तम है|
ReplyDeleteशुक्रिया अन्शू
Deleteदादा गज़ल मे आप उस्ताद हो, लोगों को क्लास दो ताकि वो आपसे कुछ सीख सके।
ReplyDeleteहर हरुफ़ मे बस आपकी दिल की आवाज आ रही है। बहुत खूब गोपु दादा
सोनिया बेटा अभी मै खुद ही एक शिक्षार्थी हूं.....
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