निगाहों में आज आ बसा कोई
आँखों से पिला गया नशा कोई।
लगता कोई चाँदनी है साथ में
न होगा जमाने में हमसा कोई।
फ़िज़ा में गूँजे शहनाई की धुन
सूने दिल मे हुआ जलसा कोई।
रूह में भर गई जीने की आरजू
लगे इश्क का बादल बरसा कोई।
तेरे ही आगोश मे कटे ज़िन्दगी
और न कोई आरजू न नशा कोई।
....................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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