कौन है वो,
जिसका हमे
होता है आभास
पर वो सामने नहीं।
कौन है वो,
जो छाया बन
साथ-साथ चलता
पर वो दिखता नही।
कौन है वो,
जो देता है हमे
सुखद स्पर्ष
पर वो छूता नहीं।
कौन है वो,
जो देता है हमे
स्वर्णिम आनद
पर वो हँसता नहीं।
कौन है वो,
जो हर दर्द मे
है साथ-साथ
पर कराहता नहीं।
कौन है वो,
जो है
मेरे साथ हर साँस।
कौन है वो,
जिसका करते
हम हर पल,
हर क्षण आभास।
कौन है वो,
जिसको ढूँढे हम
मंदिर-मस्जिद
और गिरजाघर मे।
वो, है यहीं कहीं
पर हम
पा न सके
उसको कहीं।
कौन है वो,
जिसको अब हम
खुद में ढूँढते है।
खुद में ढूँढते है।।
....................... गोपाल कृष्ण शुक्ल
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