चुपके-चुपके सबसे नजरें चुरा के देखो
एक बार हमसे भी नजरें मिला के देखो।
मैं ख्वाब हूँ, एहसास और हकीकत भी
खयालों में देखो कभी हाथ लगा के देखो।
दिल मेरा सच्चा है, खरा है, ओ ! दिलबर
जिस कदर चाहो इसे ठोंक-बजा के देखो।
कई सुहाने मँजर आयेंगें नजरों के सामने
अपनी आँखों में मेरा अक्स बिठा के देखो।
रुख पे लाली छायेगी, नजरें भी शरमायेंगी
जरा अपना दिल मेरे दिल से लगा के देखो।
तुम इसे गीत, नज्म या कि कहो गज़ल
लिखे वरक पे दो हरफ़, गुनगुना के देखो।
------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल
मँजर = नजारा
वरक = पन्ना
हरफ़ = अक्षर
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